बुधवार, 7 नवंबर 2012

॥ श्री राम चालीसा ॥ (in Hindi Script)

श्री रघुवीर भक्त हितकारी ।  सुन लीजै प्रभु अरज हमारी ।।
निशिदिन ध्यान धरै जो कोई ।  ता सम भक्त और नहिं होई ।।

ध्यान धरे शिवजी मन माहीं ।  ब्रहृ इन्द्र पार नहिं पाहीं ।।
दूत तुम्हार वीर हनुमाना ।  जासु प्रभाव तिहूं पुर जाना ।।

तब भुज दण्ड प्रचण्ड कृपाला ।  रावण मारि सुरन प्रतिपाला ।।
तुम अनाथ के नाथ गुंसाई ।  दीनन के हो सदा सहाई ।।

ब्रहादिक तव पारन पावैं ।  सदा ईश तुम्हरो यश गावैं ।।
चारिउ वेद भरत हैं साखी ।  तुम भक्तन की लज्जा राखीं ।।

गुण गावत शारद मन माहीं ।  सुरपति ताको पार न पाहीं ।।
नाम तुम्हार लेत जो कोई ।  ता सम धन्य और नहिं होई ।।

राम नाम है अपरम्पारा ।  चारिहु वेदन जाहि पुकारा ।।
गणपति नाम तुम्हारो लीन्हो ।  तिनको प्रथम पूज्य तुम कीन्हो ।।

शेष रटत नित नाम तुम्हारा ।  महि को भार शीश पर धारा ।।
फूल समान रहत सो भारा ।  पाव न कोऊ तुम्हरो पारा ।।

भरत नाम तुम्हरो उर धारो ।  तासों कबहुं न रण में हारो ।।
नाम शक्षुहन हृदय प्रकाशा ।  सुमिरत होत शत्रु कर नाशा ।।

लखन तुम्हारे आज्ञाकारी ।  सदा करत सन्तन रखवारी ।।
ताते रण जीते नहिं कोई ।  युद्घ जुरे यमहूं किन होई ।।

महालक्ष्मी धर अवतारा ।  सब विधि करत पाप को छारा ।।
सीता राम पुनीता गायो ।  भुवनेश्वरी प्रभाव दिखायो ।।

घट सों प्रकट भई सो आई ।  जाको देखत चन्द्र लजाई ।।
सो तुमरे नित पांव पलोटत ।  नवो निद्घि चरणन में लोटत ।।

सिद्घि अठारह मंगलकारी ।  सो तुम पर जावै बलिहारी ।।
औरहु जो अनेक प्रभुताई ।  सो सीतापति तुमहिं बनाई ।।

इच्छा ते कोटिन संसारा ।  रचत न लागत पल की बारा ।।
जो तुम्हे चरणन चित लावै ।  ताकी मुक्ति अवसि हो जावै ।।

जय जय जय प्रभु ज्योति स्वरुपा ।  नर्गुण ब्रहृ अखण्ड अनूपा ।।
सत्य सत्य जय सत्यव्रत स्वामी ।  सत्य सनातन अन्तर्यामी ।।

सत्य भजन तुम्हरो जो गावै ।  सो निश्चय चारों फल पावै ।।
सत्य शपथ गौरीपति कीन्हीं ।  तुमने भक्तिहिं सब विधि दीन्हीं ।।

सुनहु राम तुम तात हमारे ।  तुमहिं भरत कुल पूज्य प्रचारे ।।
तुमहिं देव कुल देव हमारे ।  तुम गुरु देव प्राण के प्यारे ।।

जो कुछ हो सो तुम ही राजा ।  जय जय जय प्रभु राखो लाजा ।।
राम आत्मा पोषण हारे ।  जय जय दशरथ राज दुलारे ।।

ज्ञान हृदय दो ज्ञान स्वरुपा ।  नमो नमो जय जगपति भूपा ।।
धन्य धन्य तुम धन्य प्रतापा ।  नाम तुम्हार हरत संतापा ।।

सत्य शुद्घ देवन मुख गाया ।  बजी दुन्दुभी शंख बजाया ।।
सत्य सत्य तुम सत्य सनातन ।  तुम ही हो हमरे तन मन धन ।।

याको पाठ करे जो कोई ।  ज्ञान प्रकट ताके उर होई ।।
आवागमन मिटै तिहि केरा ।  सत्य वचन माने शिर मेरा ।।

और आस मन में जो होई ।  मनवांछित फल पावे सोई ।।
तीनहुं काल ध्यान जो ल्यावै ।  तुलसी दल अरु फूल चढ़ावै ।।

साग पत्र सो भोग लगावै ।  सो नर सकल सिद्घता पावै ।।
अन्त समय रघुबरपुर जाई ।  जहां जन्म हरि भक्त कहाई ।।

श्री हरिदास कहै अरु गावै ।  सो बैकुण्ठ धाम को पावै ।।


।। दोहा ।।

सात दिवस जो नेम कर, पाठ करे चित लाय ।  हरिदास हरि कृपा से, अवसि भक्ति को पाय ।।
राम चालीसा जो पढ़े, राम चरण चित लाय ।  जो इच्छा मन में करै, सकल सिद्घ हो जाय ।।

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श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन हरण भव भय दारुणं ।

श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन हरण भव भय दारुणं ।

Shri Raam -Balak Raam with his mother



श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन हरण भव भय दारुणं ।
नवकंज-लोचन कंज मुख कर कंज पद कंजारुणं ॥
कन्दर्प अगणित अमित छवि नवनील-नीरद सुन्दर ।
पटपीत मानहु तड़ित रुचि शुचि नौमि जनक सुतावरं ॥

भजु दीन बन्धु दिनेश दानव दैत्यवंश-निकन्दनं ।
रघुनन्दन आनन्द कंद कौशलचन्द दशरथ्-नन्दनं ॥
सिर मुकुट कुण्डल तिलक चारु उदारु अंग विभूषणं ।
आजानु-भुज-शर-चाप-धर- संग्राम जित-खरदूषणं ॥

इति वदति तुलसीदास शंकर-शेष-मुनि-मन-रंजन ।
मम हृदय-कंज निवास कुरु कामादि खलदल-गंजन ॥
मनु हाहिं राचेऊ मिलिहि सो बरु सहज सुंदर साँवरो ।
करुणा निधाअन सुजान सील सनेह जानत रावरो ॥

एहि भाँति गौरि असीस सुनि सिय सहित हियँ हरषी अली ।
तुलसी भवानिहि पूजि पुनि पुनि मुदित मन मंदिर चली ॥

शुक्रवार, 2 नवंबर 2012

करवा चौथ (Karwa Chauth)

करवा चौथ की पौराणिक कथा केअनुसार एक समय की बात है, जब नीलगिरी पर्वत पर पांडव पुत्र अर्जुन तपस्या करने गए। तब किसी कारणवश उन्हें वहीं रूकना पड़ा। उन्हीं दिनों पांडवों पर गहरा संकट आ पड़ा। तब चिंतित व शोकाकुल द्रौपदी ने भगवान श्रीकृष्ण का ध्यान किया तथा कृष्‍ण के दर्शन होने पर पांडवों के कष्टों के निवारण हेतु उपाय पूछा।

तब कृष्ण बोले- हे द्रौपदी!मैं तुम्हारी चिंता एवं संकट का कारण जानता हूं। उसके लिए तुम्हें एक उपाय करना होगा। जल्दी ही कार्तिक माह की कृष्ण चतुर्थी आने वाली है, उस दिन तुम पूरे मन से करवा चौथ का व्रत रखना। भगवान शिव, गणेश एवं पार्वती की उपासना करना, तुम्हारे सारे कष्ट दूर हो जाएंगे तथा सबकुछ ठीक हो जाएगा।

कृष्ण की आज्ञा का पालन कर द्रोपदी ने वैसा ही करवा चौथ का व्रत किया। तब उसे शीघ्र ही अपने पति के दर्शनहुए और उसकी सारी चिंताएं दूर हो गईं।

जब मां पार्वती द्वारा भगवान शिव से पति की दीर्घायु एवं सुख-संपत्ति की कामना की विधि पूछी तब शिव ने 'करवा चौथ व्रत’ रखनेकी कथा सुनाई थी। करवा चौथ का व्रत करने के लिए श्रीकृष्ण ने दौपदी को निम्न कथा का उल्लेख किया था।

पुराणों के अनुसार करवा नाम की एक पतिव्रता धोबिन अपने पति के साथ तुंगभद्रा नदी के किनारे स्थित गांव में रहती थी। उसका पति बूढ़ा और निर्बल था। एक दिनजब वह नदी के किनारे कपड़े धो रहा था तभी अचानक एक मगरमच्छ वहां आया, और धोबी के पैर अपने दांतों में दबाकर यमलोक की ओर ले जाने लगा। वृद्ध पति यह देख घबराया और जब उससे कुछ कहतेनहीं बना तो वह करवा..! करवा..! कहकर अपनी पत्नी को पुकारने लगा।

ND पति की पुकार सुनकर धोबिन करवा वहां पहुंची, तो मगरमच्छ उसके पति को यमलोक पहुंचाने ही वाला था। तब करवा ने मगर को कच्चे धागे से बांध दिया और मगरमच्छ कोलेकर यमराज के द्वार पहुंची। उसने यमराज से अपने पति की रक्षा करने की गुहार लगाई और साथ ही यह भीकहा की मगरमच्छ को उसके इस कार्य के लिए कठिन से कठिन दंड देने का आग्रह किया और बोली- हे भगवन्! मगरमच्छ नेमेरे पति के पैर पकड़ लिए है। आप मगरमच्छ को इस अपराधके दंड-स्वरूप नरक भेज दें।

करवा की पुकार सुन यमराज नेकहा- अभी मगर की आयु शेष है, मैं उसे अभी यमलोक नहींभेज सकता। इस पर करवा ने कहा- अगर आपने मेरे पति को बचाने में मेरी सहायता नहीं कि तो मैं आपको श्राप दूंगी और नष्ट कर दूँगी।

करवा का साहस देख यमराज भी डर गए और मगर को यमपुरी भेजदिया। साथ ही करवा के पति को दीर्घायु होने का वरदान दिया। तब से कार्तिक कृष्ण की चतुर्थी को करवा चौथ व्रत का प्रचलन में आया। जिसे इस आधुनिक युग में भी महिलाएं अपने पूरी भक्ति भाव के साथ करती है और भगवान से अपनी पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं।

गुरुवार, 1 नवंबर 2012

अध्धयन के लिए दिशा विचार

पढ़ाई की दिशा उत्तर-पूर्व

वर्तमान युग प्रतियोगिता का है यहाँ छोटी से छोटी कक्षा से लेकर बड़े से बड़े व्यावसायिक पाठ्यक्रमों में कड़ी प्रतिस्पर्धा है। पढ़ाई और मेहनत तो सभी करते हैं लेकिन पढ़ाई में यदि हम उचित दिशा का ज्ञान भी शामिल कर लें तो बेहतर परिणाम मिल सकते हैं। पर बच्चों को पढ़ाई के लिए बैठाते समय हम इस महत्वपूर्ण बात को भूल ही जाते हैं कि उसे किस दिशा की ओर मुँह कर के पढ़ने बैठाना है। साथ ही यह भी ध्यान रखना चाहिए कि पढ़ाई का स्थान कहाँ होना चाहिए जिससे पढ़ाई सुचारु रुप से व निर्विघ्न संपन्न हो और परीक्षा में उत्तम से उत्तम परिणाम आएँ।

जो युवक-युवतियाँ पश्चिम की ओर मुंँह कर के पढ़ते हैं, देखा गया है कि उनका पढ़ाई में मन नहीं लगता। यदि वे पढ़ते भी हैं तो उत्तम परिणाम नहीं मिल पाते। पश्चिम दिशा ढलती हुई शाम की तरह चेतना में सुस्तपन को विकसित करती है। दक्षिण दिशा भी पढ़ाई हेतु उपयुक्त नहीं रहती, क्योंकि यह दिशा हमेशा निराशा का संचार कराती है। मन बेचैन रहता है, पढ़ने में भी मन नहीं लगता। परिणाम तो वे लोग भलीभाँति जानते होंगे जो दक्षिण ओर मुँह करके पढ़ते हैं।

उचित प्रकाश में ठंडे पानी से हाथ-मुँह धो कर जहाँ तक हो सके खुशबूदार अगरबत्ती लगाकर उत्तर की ओर मुँह करके पढ़ने से एक तो पढ़ाई के क्षेत्र में उन्नति होती है वहीं पढ़ा हुआ भी याद रहता है। और फिर परिणाम तो उत्तम ही रहेंगे। यदि सदा ही पूर्व दिशा की ओर मुँह करके पढ़ाई की जाए तो सदैव उत्तम परिणाम के साथ-साथ आगे बढ़ने के अवसर भी आते हैं।

पूर्व दिशा से ही नई चेतना व स्फूर्ति का संचार होता है और सूर्योदय इसी दिशा में होने के कारण सूर्य की तरह उन्नति पाने के योग बनते हैं। साथ ही उत्तर दिशा शीतलता भी प्रदान करती है और हम जानते ही हैं कि पढ़ाई के लिए दिमाग ठंडा होना आवश्यक है। जब मन स्थिर होगा तो पढ़ाई में अच्छी तरह से ध्यान केंद्रित होगा। इस प्रकार हम अध्ययन के लिए बैठक व्यवस्था उत्तर-पूर्व की ओर रखें तो निश्चित ही उत्तम परिणाम पाएँगे और हमारी मेहनत भी रंग लाएगी।

श्री कृष्ण की आरती

आरती कुंजविहारी की। श्रीगिरधर कृष्णमुरारी की।
गले में बैजंतीमाला, बजावै मुरली मधुर वाला।
श्रवन में कुण्डल झलकाला, नंदके आनंद नंदलाला। श्री गिरधर ..
गगन सम अंग कांति काली, राधिका चमक रही आली,
लतनमें ठाढ़े बनमाली।
भ्रमर सी अलक, कस्तूरी तिलक, चंद्र सो झलक,
ललित छवि स्यामा प्यारी की। श्री गिरधर ..
कनकमय मोर-मुकुट बिलसै, देवता दरसन को तरसे,
गगन सो सुमन राशि बरसै,
बजे मुरचंग, मधुर मिरदंग, ग्वालनी संग,
अतुल रति गोपकुमारी की। श्री गिरधर ..
जहां ते प्रकट भई गंगा, कलुष कलि हारिणि श्रीगंगा,
स्मरन ते होत मोह-भंगा,
बसी शिव सीस, जटा के बीच, हरै अध कीच,
वरन छवि श्रीबनवारीकी। श्री गिरधर ..
चमकती उ"वल तट रेनू, बज रही वृन्दावन बेनू,
चहूं दिसि गोपी ग्वाल धेनू,
हँसत मृदु नँद, चाँदनी चंद, कटत भव-फंद,
टेर सुनु दीन भिखारी की। श्री गिरधर ..
आरती कुंजबिहारी की। श्री गिरधर कृष्णमुरारी की।

श्री जगन्नाथ जी की आरती


आरती श्री जगन्नाथ मंगलकारी,
परसत चरणारविन्द आपदा हरी।
निरखत मुखारविंद आपदा हरी,
कंचन धूप ध्यान ज्योति जगमगी।
अग्नि कुण्डल घृत पाव सथरी। आरती..
देवन द्वारे ठाड़े रोहिणी खड़ी,
मारकण्डे श्वेत गंगा आन करी।
गरुड़ खम्भ सिंह पौर यात्री जुड़ी,
यात्री की भीड़ बहुत बेंत की छड़ी। आरती ..
धन्य-धन्य सूरश्याम आज की घड़ी। आरती ..