गुरुवार, 27 अप्रैल 2017

भगवान सूर्य की पूजा में प्रयोग होने वाले पुष्प

भगवान सूर्य की पूजा में प्रयोग होने वाले पुष्प

भविष्य पुराण में बलाया गया है कि भगवान सूर्य को यदि एक आक का फूल अर्पण कर दिया जाए तो सोने की दस अशरफिया चढ़ाने का फल मिल जाता है। फूलों का तारतम्य इस प्रकार बतलाया गया है-

हजार अड़हुल के फूल से बढ़कर एक कनेर का फूल होता है, हजार कनेर के फूलों से बढ़कर एक बिल्वपत्र, हजार बिल्वपत्रों से बढ़कर एक पद्म(  सफेद रंग से भिन्न रंग वाला), हजारों रंगीन पद्म पुष्पों से बढ़कर एक मौलसिरी, हजारों मौलसिरी  से बढ़कर एक कुश का फूल, हजार कुश के फूलों से बढ़कर एक शमी का फूल हजार शमी के फूलों से बढ़कर एक नीलकमल हजार नीलकमल हजारों मील और रक्त कमलों से बढ़कर केसर और लाल कनेर का फूल होता है।


यदि इनके फूल ना मिले तो बदले में पत्ते चढ़ाएं और पत्ते भी न मिले तो इनके फल चढ़ाएं। फूल की अपेक्षा माला में दुगना फल प्राप्त होता है रात में कदम के फूल और मुकुर को अर्पण करें और दिन में शेष समस्त फूल। बेला दिन में और रात में भी चढ़ाना चाहिए।

सूर्य भगवान पर चढ़ने योग्य कुछ फूल फूल इस प्रकार हैं। बेला, मालती, काश, माधवी, पाटला, कनेर, जपा,यावन्ति, कुब्जक,कर्णिकार, पीली कटसरैया, चंपा, रोलक, कुंद, काली कटसरैया (वाण), बर्बर मल्लिका, अशोक, तिलक, लोध, अरुषा, कमल, मौलसिरी, अगस्त और पलाश के फूल तथा दुर्वा।


कुछ समकक्ष फूल
शमी का फूल और बड़ी कटेरी का फूल एक समान माने जाते हैं। करवीर की कोटि में चमेली, मौलश्री और पाटला आते हैं। श्वेत कमल और मंदार की श्रेणी एक है। इसी तरह नागकेसर, चंपा, और मुकुर एक समान माने जाते हैं।


विहित पत्र
बेल का पत्र, शमी का पत्र, भंगरैया की पत्ती, तमालपत्र, तुलसी पत्र, काली तुलसी के पत्ते, कमल के पत्ते भगवान सूर्य की पूजा में गृहीत हैं।


भगवान सूर्य के लिए निषिद्ध फूल।

गुंजा (कृष्णाला), धतूरा, कांची, अपराजिता ( गिरी कर्णिका), भटकटैया, तगर और अमड़ा, इन्हें भगवान सूर्य पर न चढ़ाएं। वीरमित्रोदय में इन्हें सूर्य पर चढ़ाने का निषेध किया गया है यथा।


फूलों के चयन की कसौटी

सभी फूलों का नाम गिनाना कठिन है। सब फूल सब जगह मिलते भी नहीं। अतः शास्त्र में योग्य फूलों के चुनाव के लिए हमें एक कसौटी दी है की जो फोन निषेद कोठी में नहीं हैं और रंग रूप तथा सुगंध से युक्त हैं उन सभी फूलों को भगवान को चढ़ाना चाहिए।

बुधवार, 26 अप्रैल 2017

भगवान विष्णु की पूजा के लिए विहित और निषिद्ध पत्र पुष्प

भगवान विष्णु भगवान विष्णु को तुलसी बहुत ही प्रिय है। एक ओर रत्न मणि तथा स्वर्ण निर्मित बहुत से फूल चढ़ाया जाएं दूसरी ओर तुलसीदल चढ़ाया जाए तो भगवान तुलसीदल को ही पसंद करेंगे। सच पूछा जाए तो यह तुलसी दल की सोलहवीं कला की भी समता नहीं कर सकते। भगवान को कौस्तुभ(माणिक्य) भी उतना प्रिय नहीं है, जितना की तुलसी पत्र-मंजरी। काली तुलसी तो प्रिय है ही किंतु गौरी तुलसी तो और भी अधिक प्रिय है भगवान ने स्वयं अपने श्रीमुख से कहा है कि यदि तुलसीदल न हो तो कनेर, बेला, चंपा, कमल और मणि आदि से निर्मित फूल भी मुझे नहीं सुहाते। तुलसी से पूजित शिवलिंग या विष्णु की प्रतिमा के दर्शन मात्र से ब्रम्ह हत्या का दोष भी दूर हो जाता है। एक ओर मालती अदि की ताज़ी मालाएं हो दूसरी और दूसरी और बासी तुलसी हो तो भी भगवान उसी बासी तुलसी को ही अपनाएंगे।



शास्त्र ने भगवान पर चढ़ने योग्य पत्रों का भी परस्पर तारतम्य बतलाकर तुलसी की सर्वातिशायिता बतलाई हैं जैसे कि चिड़चिड़े की पत्ती से भंगरैया की पत्ती अच्छी मानी गई है तथा उससे अच्छी खैर की और उससे भी अच्छी शमी की, शमी से दूर्वा, दूर्वा से अच्छा कुश, और उससे भी अच्छा दौनाकी, उससे भी अच्छा बेल की पत्ती और उससे भी अच्छा तुलसीदल होता है।

नरसिंह पुराण में फूलों का तारतम्य बतलाया गया है और कहां गया है की दस स्वर्ण सुमनों का दान करने से जो फल प्राप्त होता है वह एक गुमा के फूल चढ़ाने से प्राप्त हो जाता है। इसके बाद उन फूलों का नाम गिनाए गए हैं जिनमें पहले की अपेक्षा अगला उत्तरोत्तर हजार गुना अधिक फलप्रद होता है जैसे घुमा के फूल से हजार गुना बढ़कर एक खैर, हजारों खैर के फूल से बढ़कर एक शमी का फूल, हजारों शमी के फूल से बढ़कर एक मौलसिरी का फूल, हजारों मौलश्री के पुष्पों से बढ़कर एक नन्द्यावर्त आर्वत, हजारों ननन्द्यावर्त से बढ़कर एक कनेर, हजारों कनेर के फूलों से बढ़कर एक सफेद कनेर, हजारों सफेद कनेर से बढ़कर एक कुशा का फूल, हजारों कुशा के फूल से बढ़कर एक वनवेला, हजारों वनवेला के फूलों से एक चंपा, हजारों चंपाओं से बढ़कर एक अशोक, हजारों अशोक के पुष्पों से बढ़कर एक माधवी, हजारों वासंतीयों से बढ़कर एक गोजटा, हजारों गोजटाओं के फूल से बढ़कर एक मालती, हजारों मालती के फूलों से बढ़कर एक लाल त्रिसंधि(फगुनिया), हजारों लाल त्रिसंधि  के फूल से बढ़कर एक सफेद त्रिसंधि, हजारों सफेद त्रिसंधि के फूलों से बढ़कर एक कुंदन का फूल, हजारों कुंदन पुष्पों से बढ़कर एक कमल का फूल हजारों कमल पुष्पों से बढ़कर एक बेला और हजार बेला फूलों से बढ़कर एक चमेली का फूल होता है निम्नलिखित फूल भगवान को लक्ष्मी की तरह प्रिय हैं इस बात को उन्होंने स्वयं श्री मुख से कहा है--

मालती, मौलसिरी, अशोक, कलीनेवारी(शेफालिका), बसंतीनेवारी (नवमल्लिका), आम्रात(आमड़ा), तगर आस्फोत, बेला, मधुमल्लिका, जूही, अष्टपद, स्कंध, कदंब, मधुपिंगल, पाटला, चंपा, हृद्य, लवंग, अतिमुक्तक(माधवी), केवड़ा कुरब, बेल, सायं काल में फूलने वाला श्वेत कमल (कल्हार) और अडूसा

कमल का फूल तो भगवान को बहुत ही प्रिय है। कृष्णरहस्य में बतलाया गया है कि कमल का एक फूल चढ़ा देने से करोड़ों वर्ष के पापों का नाश हो जाता है। कमल के अनेक भेद हैं। उन भेदों के फल भी भिन्न-भिन्न हैं। बतलाया गया है कि सौ लाल कमल चढ़ाने का फल एक श्वेत कमल के चढ़ाने से मिल जाता है तथा लाखों श्वेत कमलों का फल एक नीलकमल से और हज़ारों नील कमलों का फल एक पद्म से प्राप्त हो जाता है यदि कोई भी किसी प्रकार का एक भी पद में चढ़ा दे तो उसके लिए विष्णुपुरी की प्राप्ति सुनिश्चित है।
बलि के द्वारा पूछे जाने पर भक्तराज प्रह्लाद ने भगवन विष्णु को प्रिय कुछ फूलों के नाम बतलाए हैं सुवर्णजाती, शतपुष्पा, चमेली, कुंद, कठचंपा, बाण, चंपा, अशोक, कनेर, जूही, परिभद्र, पाटला, मौलसिरी, अपराजिता, तिलक, अड़हुल, पीले रंग के समस्त फूल और तगर।

पुराणों ने कुछ नाम और गिनाए हैं जो नाम पहले आ गए हैं उनको छोड़कर शेष नाम इस प्रकार हैं अगस्त्य, आम की मंजरी, मालती, बेला, जूही, माधवी, अतिमुक्तक, यावंती, कुब्जई, करण्टक, पीली कटसरैया, धव(धातक), वाण(काली कटसरैया), बर्बरमल्लिका (बेला का भेद) और अडूसा।



विष्णुधर्मोत्तर में बतलाया गया है कि भगवान विष्णु के श्वेत पीले फूल की प्रियता प्रसिद्ध है, फिर भी लाल फूलों में दो पहरिया (बन्धुक), केसर, कुमकुम, अड़हुल के फूल उन्हें प्रिय हैं अतः इन्हें अर्पित करना चाहिए। लाल कनेर और बर्रे भी भगवान को प्रिय है। बर्रे का फूल पीला लाल होता है।

इसी तरह कुछ सफेद फूलों को वृक्षायुर्वेद लाल उगा देता है। लाल रंग होने मात्र से वे अप्रिय नहीं हो जाते, उन्हें भगवान को अर्पण करने चाहिए इस प्रकार कुछ सफेद फूलों के बीच भिन्न-भिन्न वर्ण होते हैं जैसे परिजात के बीच में लाल वर्ण का होता होता है। बीच में भिन्न वर्ण होने से भी उन्हें सफेद फूल माना जाना चाहिए और वह भगवान के अर्पण योग्य हैं।

विष्णुधर्मोत्तर के द्वारा प्रस्तुत नए नाम यह हैं --  तीसी, भूचंपक, पुरन्ध्रि, गोकर्ण और नागकर्ण।

अंत में विष्णुधर्मोत्तर ने पुष्पों के चयन के लिए एक उपाय बतलाया है कि जो फूल शास्त्रों से निषिद्ध ना हो और गंध तथा रूप से संयुक्त हो उन्हें विष्णु भगवान को अर्पण करना चाहिए।



विष्णु भगवान के लिए निषिद्ध पुष्प

विष्णु भगवान पर नीचे लिखे फूलों को चढ़ाना मना है --
आक, धतूरा, कांची, अपराजिता (गिरीकर्णिका), भटकटैया, कुरैया, सेमल, शिरीष, चिचिड़ा(कोशातकी), कैथ, लान्गुली, सहिजन, कचनार, बरगद, गूलर, पाकर, पीपल और आमड़ा(कपितन)।

घर पर रोपे गए कनेर और दुपहरिया के फूल का भी निषेध है

मंगलवार, 18 अप्रैल 2017

जानिए लक्ष्मीजी की कैसी फोटो है शुभ और कैसी है अशुभ

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय, मित्रों आज हम बतायेगे की लक्ष्मी जी की कैसी चित्र या मूर्ति को घर में स्थापित करें और किस प्रकार की चित्रों का संस्थापन न करें, जो की घोर हानि का कारण बन सकता है।


लक्ष्मी जी की ऐसी चित्र या मूर्ति को घर में स्थापित न करें, जिसमे वे उल्लू की सवारी कर रहीं हों। इस प्रकार के चित्र और मूर्ति की पूजा करने से धन लाभ नहीं बल्कि नुकसान हो सकता है। धन मिल भी जाये तो वह निरर्थ ही खर्च हो सकता है

चंचल स्वभाव में लक्ष्मी जी का वाहन उल्लू है। उल्लू अँधेरे में रहने वाला जीव है, अँधेरा तम और असत का प्रतीक है, और उल्लू अज्ञान का, उल्लू पर सवार लक्ष्मी अत्यंत चंचल होती है। चंचल लक्ष्मी कही भी जादा देर नही टिकती है

लक्ष्मीजी की कैसी फोटो है शुभ और कैसी है अशुभ


ऐसी चित्र या मूर्ति को भी घर में स्थापित न करें जिसमे लक्ष्मी जी खड़ी हों, यह भी अस्थिर लक्ष्मी का प्रतीक है
लक्ष्मीजी की कैसी फोटो है शुभ और कैसी है अशुभ


लक्ष्मी की ऐसे फोटो की पूजा करनी चाहिए जिसमे वे भगवान विष्णु के साथ गरूण पर सावार हों। ऐसे चित्र की पूजा से शुभ धन की प्राप्ति होती है और यह धन घर में स्थिर भी रहता है

दिवाली पर गणेश और लक्ष्मी की पूजा का अप्रत्यक्ष आशय यह है की गणेश जी बुद्धि और ज्ञान के प्रतिक है और लक्ष्मी जी सौभाग्य और सम्पन्नता की प्रतीक है
लक्ष्मीजी की कैसी फोटो है शुभ और कैसी है अशुभ


अगर घर में लक्ष्मीं जी की चित्र लगनी हो तो ऐसी चित्र लगायें जिसमे वे बैठी हों। दीवाली पर जब लक्ष्मी जी के पूजन के लिए मूर्ती कर चयन करें तो, कमल आसन पर विराजमान लक्ष्मी की मूर्ती की स्थापना और पूजन करें

लक्ष्मीजी की कैसी फोटो है शुभ और कैसी है अशुभ


जिससे सुभ लक्ष्मी आपके धर में सदैव विराजमान रहे है