सावन महीने में भगवन शिव की आराधना की जाती है| सारे सनातनी गंगा की पवित्र जल से भगवन शिव का अभिषेक करते है| शिव की पूजा में गंगा जल, बेल पत्र, चन्दन, दूध, घतुरा अदि चीजो का इस्तेमाल किया जाता है| आज हमें जानने की जरुरत है की इन सबके पीछे कौन सी वैज्ञानिक सोच है|
बेल का पेड़ एक औषधि का वृक्ष है जिसमे अनेको ऐसे औशाधिये गुण है जो मानव को स्वस्थ तो रख ही सकते है साथ ही पर्यावरण को भी स्वच्क्ष रखा सकते है| बेल पर्त्रो में अनेको ऐसे तत्वा मिलते है जो की कीटाणु और विषाणु नाशक है जैसे की सल्फर, फास्फोरस आदि|अब हम बेल पत्र के उपयोग की पूरी प्रक्रिया को समझते है| सबसे पहले भक्त बेल पत्र को इकठ्ठा करने की लिए सुबह उठ कर आस पास के बगीचे में जाता है जहा उसे टहलने के क्रम में घास पर टहल कर जाना होता है जिससे उसे स्वस्थ लाभ मिलता है घास पर पारी ओस की बूंदों से वो काफी स्वस्थ महसूस करता है साथ ही उसके आँखों जी ज्योति भी बढती है| इसके उपरत हाथो से जब वो बेल पत्रों को तोरता है तो ओस की बूंदों को स्पर्श करता है जिससे वो और भी तरोताजा महसूस करता है तिन पत्ती बेल पत्रों को को इकठ्ठा करने के क्रम में भी उसे अनेको लाभी मिलते है|
पूजा करते समय बेल पत्रों को जल के साथ शिवलिंग पर चढ़ाया जाता है| और भक्त पुरे मन से शिव की आराधना करते है| जिससे की भक्त को एक अलोकिक सुख मिलता है| संध्या कल को मंदिर का पुजारी सारे पुष्प और बेल पत्रों को एकत्र करके पास के नदी या तालाब में ड़ाल देता है| जैसा की हम लोग जानते है सावन में जोरो की बारिश होती है और ये बारिश का पानी सभी जगह के गंदगियो को बहा कर अपने साथ नदियों और तालाब में ले आता है| इस गंदगी के वजह से सारे नदी और तलब गंदे हो जाते है और उसमे रहने वाले जीव जंतु मरने लगते है| इसलिए तलब को साफ़ रखने के लिए कोई भी कारगर उपाय नहीं होता है| इसलिए उसमे बैल पत्र द्वारा साफ और स्वच्क्षा रखा जाता है|
बैल पत्रों में निहित तत्वा गंदगियो को समेट कर नदी के किनारों पर जमा करने लगती और तालाब में इन गंदगियो को समेट कर तालाब के तली में और किनारों पर जमा करने लगती है जिससे की नदी और तालाब साफ़ हो जाते है| उसके दूषित तत्व पानी से अलग हो जाते है और उसका पानी निर्मल हो जाता है साथ है उसमे औष्धिये गुण भी आ जाते है जो त्वचा रोग को ठीक कर सकता है|
अतः मुर्ख लोगो द्वारा कहा जाना की ये सिर्फ एक रूढ़िवादिता है एक बहुत बरी मुर्खता है| सनातन धर्म के विज्ञानं को समझाने की जरुरत है जो की हमारे फायदे के लिए बनाया गया है| ताकि हम अपना जीवन स्वस्थ रख सके साथ ही वातावरण को भी स्वस्थ रख सके|
-पंडित दयानन्द शास्त्री
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